बिहार/बिहारी, यह नाम सुनकर भारत के ही कई क्षेत्रों के लोगों के मन इसके प्रति नीची भावना आने लगती है। बिहारी शब्द एक गाली के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। लोगों के मन में “बिहारी” नाम सुनते ही अनपढ़, असभ्य और न जाने कितने गलत विचार आने लगते है( खैर बीते कुछ सालों में यह कुछ कम हुआ है)….
बिहार दिवस 2023
नमस्ते मित्रों, हमारे इस लेख में आपका स्वागत है। बिहार की स्थापना 22 मार्च 1912 को हुआ था अतः यह बिहार का 111 वा स्थापना दिवस है। ऊपर के पंक्तियों में जो आपने पढ़ा वो बहुत हद तक सही है और अगर आप एक बिहारी होगें, तो आपको यह कुछ खराब भी लगा होगा।
लेकिन बिहार के साथ हमेशा ऐसा नहीं था। बिहार पूरे विश्व में एक प्रकाश पुंज की तरह था, जो कालांतर में बहुत से कारणों के कारण धूमिल पड़ गया है। इस वर्ष बिहार दिवस का thime- “युवा शक्ति बिहार की प्रगति” है। चलिए इस लेख में बिहार के गौरवशाली इतिहास को chronological order (कालानुक्रमिक क्रम) में समझते हैं।
बिहार का इतिहास
बिहार एक समृद्ध इतिहास से संपन्न भूमि है। यहाँ रामायण और महाभारत में उल्लिखित बहुत से स्थान विद्यमान हैं। जैसे- अंग (वर्तमान भागलपुर), राजगृह, सीतामढ़ी (उत्तरी बिहार में)। साथ ही विश्व के महत्वपूर्ण पंथ बौद्ध और जैन का जन्मस्थली है। यह बिहार ही है जहां से लोकतंत्र का सबसे पहला बीज बोया गया था। (अपने हमेशा सुना होगा की भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र है, लेकिन सच तो यह है की भारत ही लोकतंत्र की जननी है।) यह बिहार ही है जहां विश्व का पहला सच्चा साम्राज्य मौर्य साम्राज्य स्थापित हुआ था, जो की पूरी भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया।
पटना जो की गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है, बिहार की राजधानी है। बिहार का वर्तमान भौगोलिक सीमा 1912 ईसवी में बंगाल से विभाजन और 2000 ईसवी में झारखण्ड से विभाजन के फलस्वरूप बना।
बिहार का प्राचीन इतिहास
बिहार का इतिहास मानव की प्राचीनतम सभ्यताओं से जुड़ा हुआ है। यहां प्रागैतिहासिक काल के बहुत से साक्ष्य मिले हैं। साथ ही हिंदू धर्म से जुड़ी बहुत सी महत्वपूर्ण स्थान यहां से जुड़ा हुआ है।
रामायण का एक महत्वपूर्ण स्थान
granth रामायण के अनुसार श्री राम के धर्म पत्नी सीता बिहार की राजकुमारी थीं। यह विदेह साम्राज्य के राजा जनक की पुत्री थीं। विदेह वर्तमान के उत्तर-मध्य बिहार के जिलों (मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी) और नेपाल के क्षेत्र में फैला था।
रामायण के अनुसार सीता का जन्म स्थान पुनौरा है जो की सीतामढ़ी जिला मुख्यालय के पश्चिम में अवस्थित है। जनकपुर जहां राम और सीता का विवाह हुआ था, ये बिहार के सीमा पर नेपाल में स्थित है।
महर्षि वाल्मीकि, रामायण के लेखक, का जन्म स्थान यहीं माना जाता है। वर्तमान में वाल्मीकि नगर (महर्षि वाल्मिकी के नाम पर) जो की पश्चिमी चंपारण का एक छोटा सा नगर है, को इनका जन्म स्थान माना जाता है।
महान धर्म बौद्ध और जैन का जन्म स्थली
महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर के बिना बिहार का इतिहास पूरा नहीं हो सकता है।
राजकुमार गौतम, सन्यासी बनने के बाद वर्तमान दक्षिण बिहार के गया जिले में स्थित बोधगया में इन्होंने तप कर ज्ञान की प्राप्ति कर बुद्ध बन गए। इसके उपरांत उन्होंने महान बौद्ध धर्म का नीव डाला। एक और महान धर्म जैन के 24वे तीर्थकर भगवान महावीर का जन्म स्थली और मृत्यु भूमि यहीं अवस्थित है।
सिक्खों का महत्वपूर्ण स्थान
सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह जी महाराज का जन्म बिहार में ही हुआ था। उनके जन्म स्थान पर भव्य गुरुद्वारे की स्थापना किया गया है, जिसे तख्त श्री हरमंदिर जी साहिब के नाम से जाना जाता है। यह पटना के पूर्वी भाग में बसा हुआ है, और इस क्षेत्र को पटना साहिब के नाम से जाना जाता है। यह गुरुद्वारा सिक्खों के पांच प्रमुख तख्तों (पूजा स्थान) में से एक है।
आधुनिक अर्थव्यवस्था का सबसे आरंभिक सूत्रधार
प्राचीन काल में मगध और लिच्छिवी साम्राज्य ने ऐसे-ऐसे शासक और महान व्यक्तियों को जन्म दिया, जो राज्य संचालन विज्ञान के नवीन पद्धति का शुरुआत किया। कौटिल्य, अर्थशास्त्र के लेखक, इन्होंने सैन्य रणनीति, आर्थिक नीति और राज्य संचालन के बारे में लिखा, यहीं रहते थें। ये चाणक्य के नाम से भी जाने जाते थें। ये मौर्य साम्राज्य के संथापक चंद्रगुप्त मौर्य के शिक्षक, संरक्षक और प्रधानमंत्री थें।
कौटिल्य चंद्रगुप्त के दूत होने के नाते, देश और विश्व के बहुत से क्षेत्रों में राज्य के हित और ग्रीक अक्रमणकारियों को रोकने के लिए गए। वह सिर्फ ग्रीक के बाद के ही हमलों को रोकने में सफल नहीं रहें, अपितु उन्होंने भारत और ग्रीक के बीच एक सौहार्द्यपूर्ण संबंध बनाए।
मेगास्थनीज, अलेक्जेंडर के सेनापति सेल्युकस निकेतर, के दूत थें। ये पाटलिपुत्र(पटना का प्राचीन नाम) में लगभग 302 ईसवी पूर्व में ही रहा करतें थें। इन्होंने अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यहां व्यतीत किए। इन्होंने भारत का पहला लिखित विदेशी यात्री साक्ष्य इंडिका लिखा। इंडिका पुस्तक में इन्होंने भारत के संस्कृति और शासन के स्वरूप का जीवंत रूप प्रस्तुत किया।
सम्राट अशोक
एक और मौर्य शासक अशोक, जिन्हे प्रियदर्सी के नाम से जाना जाता था, इन्होंने शासन के दृढ़ सिद्धांत को अपनाया। इन्होंने ने बौद्ध धर्म को अपनाया और पूरे शासन क्षेत्र में इसके सिद्धांतों का प्रचार किए। साथ ही विदेशों में भी बौद्ध दर्शन और सिद्धांत का प्रचार किया। इन्होंने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को सिंहल द्वीप (वर्तमान श्री लंका) बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा।
सम्राट अशोक के द्वारा बनवाए गए अशोक स्तंभ को स्वतंत्रता उपरांत भारत का राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में मान्यता मिली। इसपे बने हुए चक्र को तिरंगे झंडे के बीच में स्थापित किया गया। साथ ही अशोक स्तंभ पे संस्कृत भाषा में लिखे वाक्य “सत्यमेव जयते” को भारत का राष्ट्रीय वाक्य घोषित किया गया।
प्राचीन बिहार में स्त्रियों की स्थिति
प्राचीन बिहार स्त्रियों के राजनैतिक मामले में हस्तक्षेप करने का प्रमाण देता है। आम्रपाली जो की लिच्छवी गणराज्य की एक स्त्री थी और इसे राजकीय मामले में काफी शक्तियां प्रदान थी।
ऐसा कहा जाता है की जब भगवान बुद्ध वैशाली भ्रमण करने आए थे, तो उन्होंने कई बड़े लोगों का निमंत्रण स्वीकार करके आम्रपाली के यहां खाना खाने के लिए गए थें।
बिहार शिक्षा के शिखर के रूप में
नालंदा, जहां विश्व का पहला उच्च शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के काल में किया गया था। यहां देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी विद्यार्थी पड़ने आया करते थे। यहां की शिक्षण भाषा संस्कृत थी। फह्यान और हुयेंशंग जैसे चीनी यात्री यहां पढ़ाई किए थें। उन्होंने अपने पुस्तक में इस विद्यापीठ के बारे काफी विस्तार से लिखा था। यह विश्वविद्यालय आक्रमणकारियों द्वारा जलाने से पहले तक अपने उच्चतम शिखर पर था।
इस ज्ञान के मंदिर को बख्तियार खिलजी ने जलवा दिया था और बहुत से शिक्षक और विद्यार्थियों को मार दिया था। और यह बिहार के विनाश का पहला बड़ा कदम था। यह बिहार की बदकिस्मती है की आज भी उस आताताई के नाम पर रखे हुए नगर बख्तियारपुर का नाम नहीं बदला गया है। यह बख्तियारपुर नालंदा से ज्यादा दूर नहीं है, यह बिहार की राजधानी पटना के समीप है।
नालंदा के हो नजदीक में राजगृह है। ये प्राचीन मगध की राजधानी हुआ करता था। बिम्बिसार ने इसे अपनी राजधानी के रूप में बनाया था। यहां औषधिय गुण से परिपूर्ण गर्म जल का झरना गिरता है। यह भी राजगीर(राजगृह का वर्तमान नाम) है जहां जरासंध रहा करता था, जिसके बारे में महाभारत ग्रंथ में भी लिखा गया है। राजगृह में भगवान बुद्ध और महावीर बहुत बार आए थें।
मध्यकालीन इतिहास
बिहार का गौरवपूर्ण इतिहास 7-8वी शदी में ही गुप्त काल तक रहा।
गुप्त काल के पाटन के उपरांत मध्यकाल में बिहार का राजनीतिक और संस्कृति छवि धीरे-धीरे फीका पड़ने लगी। मध्यकाल में शेर शाह का समय बिहार के लिए कुछ राजनीतिक रूप से अच्छा रहा। शेर शाह एक अफगानी था, जो मुगल शासक बाबर का जागीरदार था। इसने बाबर के बेटे हुमायूँ के खिलाफ कई युद्ध लड़ें। जैसे- चौसा और कन्नौज का युद्ध जो की काफी प्रचलित है। इसने अपने मकबरे का भी निर्माण यहां करवाया था। जिसमे बाद में इन्हें दफन किया गया। सासाराम जिला में यह शेरशाह के मकबरे के नाम से काफी प्रचलित है और इसे देखने काफी पर्यटक आते रहते हैं।
गुरुनानक देव जी महाराज पटना आए थे और गैंग के नजदीक जेठमल मल के घर में 1509 ईसवी में रुके थें। सिखों के नवें गुरु गुरु तेग बहादुर जी भी पटना अपने परिवार के साथ 1666 में आए थें। सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म पटना में ही 1666 ईसवी में हुआ।
1703 ईसवी में औरंगेब के पोते अज़ीम उस शाम को पटना का गवर्नर नियुक्त किया गया और इसने 1704 ईसवी में पटना का नाम बदलकर अजीमाबाद रख दिया था।
बक्सर का युद्ध
बक्सर का युद्ध 21 अक्टूबर 1764 को लड़ा गया था। यह युद्ध ईस्ट इंडिया कम्पनी के सैनिकों, जो हेक्टर मुनरो के द्वारा संचालित था, और बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब सूजा उद धौला, मुगल बादशाह शाह आलम II के संयुक्त सैनिकों के साथ हुआ। इस युद्ध में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की जीत हुई और यहीं से भारत पर अंग्रेजों का शासन शुरू हो गया।
आधुनिक इतिहास
अंग्रेजों के समय बिहार बंगाल प्रेसीडेंसी के अंदर था और कोलकाता से संचालित होता था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय बिहार के डॉ राजेंद्र प्रसाद एक बड़े चेहरे के रूप में उभरे। और स्वतंत्रता के बाद भारत के पहले राष्ट्रपति बनें। डॉ प्रसाद सारण जिला के जिरादेई गांव के निवासी थें।
1912 ईसवी में बिहार और उड़ीसा बंगाल से साथ में अलग हुआ था। बाद में अधिनियम 1935 के अनुसार उड़ीसा को बिहार से अलग किया गया। 1947 में स्वतंत्रता के बाद बिहार को भारत का एक राज्य बनाया गया। फिर सरकार के राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के द्वारा पुरुलिया जिले को पश्चिम बंगाल में मिला दिया गया, क्योंकि वहां की भाषा बंगाली था।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बिहार की भूमिका
1857 के स्वाधीनता संग्राम में वीर कुंवर सिंह ने बिहार का अगुआई किए। उस समय वे 80 वर्ष के थें जब उन्होंने अंग्रेजी सैनिकों के साथ युद्ध लड़ा और हराया। ऐसा कहा जाता है की युद्ध के समय जब वीर कुंवर सिंह गंगा नदी नाव से पर कर रहें थें, तब अंग्रेजी सैनिकों ने उनका पीछा कर इनपर गोलियां चलादी। एक गोली उनके बाएं हाथ पर लगा। उन्होंने उसी छन उस हाथ को काटकर गंगा में अर्पित कर दिया। 23 अप्रैल 1858 को जगदीशपुर के नजदीक उन्होंने युद्ध कर सारे अंग्रेजी सैनिकों को साफ कर दिया। उन्होंने घायल होते हुए भी 22 और 23 अप्रैल 1858 को अंग्रेजों के विरुद्ध लड़कर जगदीशपुर किले से यूनियन जैक का झंडा हटा दिया और वहां अपना झंडा फहरा दिया। घायल होने के कारण 26 अप्रैल 1858 को उनकी मृत्यु हो गई।
1917 में महात्मा गांधी का पहला स्वीनय अवज्ञा आंदोलन चंपारण में सफल हुआ। जहां नील किसानों को अंग्रेजों तिनकथिया प्रणाली से मक्त करवाए।
निष्कर्ष
हमे आशा है की आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। अगर पसंद आया हो तो बिहार के इस गौरव पूर्ण इतिहास को अपने हरेक मित्रों तक शेयर करें, ताकि वे भी बिहार के इस इतिहास को जन पाएं। हमें पता है की बिहार के इतिहास को इतने कम सब्दो में बताया नहीं जा सकता, परंतु हमने कोशिश किया की आपको बिहार के गौरव पूर्ण इतिहास को शुरू से अंत तक बताया जा सके।
वर्तमान में राजनैतिक और सामाजिक जैसे बहुत से कारणों के कारण बिहार अपने देश में ही पीछे हो गया है। जो कभी पूरे विश्व को ज्ञान देता था वे आज अपने देश में ही कम साक्षर राज्य में गिना जाता है। ये हमलोगों की जिम्मेदारी है की बिहार को फिर से वे गौरव दिलाने में अपना-अपना योगदान दें। वंदे मातरम्! जय बिहार! यह लेख का रिफ्रेंस Land and people of Indian states and UTs और बिहार की आधिकारिक वेबसाइट से लिया गया है।