Tileshvari Barua, तिलेश्वरी बरुआ: 12 वर्ष में दी थी देश के लिए बलिदान

Tileshvari Barua: भारत में माननीय प्रधान मंत्री के आवाहन पर बुधवार से “मेरी माटी, मेरा देश” नामक अभियान की शुरुआत हुई है। इस अभियान के द्वारा देश के उन सभी गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में देश की जनता को बताना है, जिनके बारे में अभी भी बहुत कम लोग ही जानते हैं या नहीं जानते हैं। आज अगर आप भारत के किसी भी सामान्य व्यक्ति से पूछेंगे कि भारत के स्वतंत्रता सेनानियों का नाम बताएं। तो वे ज्यादा से ज्यादा 25–30 महान लोगों का ही नाम बता पाएंगे, जो ज्यादा प्रचलित है। लेकिन अंग्रेजों के आधिकारिक पत्रों (Documents) से पता चलता है की पूरे भारत में मिलाकर 4 लाख से अधिक स्वतंत्रता सेनानी थें जो भारत माता को अंग्रेजों से स्वतंत्र करने के लिए अपने प्राण तक आहूत कर दिए थें। इन पत्रों में सिर्फ उन लोगो का नाम था जो अंग्रेजों से सीधे लड़ रहे थें। न जाने कितने लोग इन स्वतंत्रता सेनानियों को मदद कर रहे थे।

आज के इस लेख में हम जानेंगे तिलेश्वरी बरुआ के अदम्य साहस के बारे में जो सिर्फ 12 वर्ष की अल्प आयु में भारत माता के हाथ में लगे बेड़ियों को तोड़ने में अपना बलिदान दे दिए। सबसे पहले मैं ऐसे हुतात्माओ को नमन करता हूं।

अमर बलिदानी तिलेश्वरी बरुआ / Amar Balidani Tileshvari Barua

अमर बलिदानी तिलेश्वरी बरुआ उन महिला स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। असम के सुदूर ढेकियाजुली से ताल्लुक रखने वाली तिलेश्वरी देश की सबसे कम आयु की शहीद मानी जाती है। ब्रिटिश शासन से संघर्ष के दौरान महज 12 वर्ष की अल्पायु में देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दी थी। गुवाहाटी से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दूर सोनितपुर जिले का धेकियाजुली, 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ब्रिटिश पुलिस की बर्बरता का गवाह बना था। 20 सितंबर 1942 को बड़ी संख्या में सत्याग्रही स्थानीय पुलिस स्टेशन में तिरंगा फहराने के लिए जुटे थें। इसी दौरान स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे निहत्थे लोगों पर अंग्रेजी पुलिस ने अंधाधुन गोलियां चला दी। जिसमे लगभग 15 लोग अपना बलिदान दे दिए। इसमें तिलेश्वरी भी थी।

20 सितंबर को जिस दिन तिलेश्वरी ने अपना बलिदान दिया था, इस दिन को असम में बलिदान दिवस/ शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। बात 20 सितंबर 1942 की है जब ढेकियाजुली थाने में लोगो ने तिरंगा फहराने का आयोजन किया था। हाथ में झंडा लिए तिलेश्वरी उस भीड़ में शामिल हो गई। लोग जब थाने पहुंचे तो पुलिस ने अनवर गोलियां चला दी। कई लोग अपना बलिदान दे दिए, पर इस बच्ची के कदम थमे नहीं और वह ‘वन्दे मातरम्’ का नारा लगाते हुए आगे बढ़ती गई। कुछ दूर आगे बढ़ने पर पुलिस ने उनपर गोली चला दी और उनका संतुलन बिगड़ गया। खून से लथपथ तिलेश्वरी को उनके एक रिश्तेदार ने अपने पीठ पर उठा कर दौड़ना शुरू किया। इसी बीच कुछ ही दूरी पर अंग्रेजी पुलिस ने उनका रास्ता रोक लिया और संभवतः तिलेश्वरी के मृत शरीर को लेकर चला गया।

तिलेश्वरी अपने पिता की एक मात्र पुत्री थी

तिलेश्वरी बरुआ(Tileshvari Barua) का जन्म ढेकियाजुली थाना अंतर्गत निज बडगांव ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम भाभाकांत बरुआ था। वे एक किसान थें। तिलेश्वरी इनका एकमात्र पुत्री थी। तिलेश्वरी बचपन से ही देशभक्ति गीतों से प्रभावित थीं। यही कारण है की काफी कम आयु में ही वे स्वेक्षा से स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ी।

ढेकियाजुली 1942, दी अनटोल्ड स्टोरी

स्वतंत्रता संग्राम की गाथा की विस्तृत जानकारी ’ढेकियाजुली 1942: दी अनटोल्ड स्टोरी’ नामक पुस्तक से मिलती है। समुद्र गुप्त द्वारा इस पुस्तक को लिखा गया है, जिसमें पहली बार इस भूले–बिसरे याद को पूरे विश्व तक पहुंचती है। इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद जिस ढेकियाजुली पुलिस स्टेशन पर नर संहार हुआ था, उसे असम सरकारी ने विरासत स्थल घोषित कर दिया। इस पुस्तक के लेखक का मानना है कि ढेकियाजुली की घटना अंग्रेजों के बर्बरता की बड़ी घटना थी। स्वतंत्रता संग्राम के इस आंदोलन में स्थानीय किसानों, महिलाओं व जनजातीय समुदायों के सदस्यों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया था।

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